प्रेम जीवन का विशुद्ध रस । प्रेम माधुरी जी का सान्निध्य जंहा अमृत के प्याले पिलाए जाते है ।प्रेम माधुर्य वेबसाइट से हमारा प्रयास है कि इस से एक संवेदना जागृत हो ।

Friday, March 23

केदार राग~भक्त


यह राग कल्याण थाट से निकलता है। इसमें शुद्ध व तीव्र दोनों "म" लगाये जाते है। इसके आरोह में "रे" और "ग" को नहीं लगाते और अवरोह में "ग" नहीं लगाते इसलिये इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। वादी स्वर "म" और सम्वादी स्वर "स" माना जाता है। गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर है। आरोह - स म म प ध प नी ध सं।
अवरोह--सं नी ध प श प ध प म ग म रे स।
पकड़--स म म प ध प म रे स।
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भक्त नरसी जी के विषय में यह विख्यात है कि जब वे मंदिर में भगवान के सम्मुख बैठकर केदार राग में भजन गाते थे तो भगवान के गले की माला उनके गले में आ जाती थी। भगवान की नरसी जी पर ऐसी कृपा देखकर लोग उनका बड़ा आदर–सम्मान करने लगे और उनकी भक्ति की सराहना करने लगे। कुछ लोगों से भक्त जी का ऐसा मान–सम्मान सहन न हुआ और वे दिन–रात ईष्र्या की अग्नि में जलने लगे। ऐसे व्यक्तियों की दशा का वर्णन करते हुए सत्पुरुष फरमाते है:– प्रभु के नाम–सुमिरण के प्रताप से सेवक मान–प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और उसकी दशों दिशाओं में अर्थात् सब ओर शोभा होती है, परन्तु दुष्ट निन्दक उसकी प्रतिष्ठा को तनिक भी सहन नहीं कर पाता। इस प्रकार वह अपने हृदय रूपी घर में स्वयमेव ही ईष्र्या की अग्नि प्रज्वलित कर लेता है। किन्तु इससे भक्त का तो कुछ भी नहीं बिगड़ता, न ही निन्दक उसे कुछ हानि पहुंचा सकता है। कथन भी है:– दुष्ट निन्दक लोग भक्तों की बढ़ाई को सहन नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें दूसरों की भलाई अच्छी नहीं लगती। किन्तु सत्यस्वरूप परमात्मा के साथ जिनकी प्रीति हो जाती है, कोई झख मार कर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। एक बार तीर्थ यात्राा करते हुए कुछ साधु महात्मा उस गांव की ओर आ निकले और पूछते–पूछते भक्त नरसी मेहता जी के घर जा पहुंचे। उस समय नरसी जी के घर में अन्न का दाना भी नहीं था। नरसी जी सोचने लगे– अब क्या किया जाए? साधु महात्मा घर में आकर भूखे जाएं, यह तो मेरे लिए बड़ी लज्जा की बात है। अच्छा! धरणीधर राय के पास चलता हुं, कदाचित् वे कुछ सहायता कर दें। यह सोचकर वे धरणीधर राय के घर गए। धरणीधर राय उनका अत्यन्त सम्मान करते थे। उन्होंने उठकर भक्त जी का सम्मान किया और उन्हें आसन पर बैठाया, तत्पश्चात् बोले– ‘‘आज कैसे कृपा की?‘‘ भक्त जी ने कहा– ‘‘आज मेरी कुटिया पर कुछ साधु–महात्मा पधारे हैं। उनके भोजन का प्रबन्ध करना है, इसलिए मुझे कुछ धन की आवश्यता है। आप मुझे साठ रुपए उधार दे दें, मैं आपको कुछ दिन बाद ब्याज सहित वापस कर दूँगा। मेरे पास जो कुछ है, आप उस में से जो वस्तु कहें, मैं गिरवी रख देता हूँ।‘‘ धरणीधर राय ने कहा– ‘आप कैसी बातें कर रहे है? आपसे मैं ब्याज लूंगा? आप सहर्ष रुपए ले जाएं और जब आप की इच्छा हो वापस करें।‘ यह कह कर उन्होंने रुपए निकाले और भक्त जी के आगे रख दिए। भक्त नरसी जी ने कहा– ‘जब तक आप कोई चीज गिरवी नहीं रखेंगे, मैं रुपए नहीं लूंगा।‘ धरणीधर राय जी ने कई बार कहा कि आप रुपए ले जाएं, परन्तु जब भक्त जी न माने तो प्रभु–पे्ररणा से धरणीधर जी के मुख से निकल गया कि यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो फिर आप अपना केदार राग मेरे पास गिरवी रख दीजिए। यह कह कर उन्होंने कागज और कलम दवात भक्त जी के आगे रख दिए। भक्त जी ने केदार राग गिरवी रखने की बात लिख कर अपने हस्तााक्षर कर दिए। ईष्र्यालु लोगों को जब यह विदित हुआ कि भक्त नरसी जी ने केदार राग गिरवी रख दिया है तो इसे उपयुक्त अवसर जान कर वे राजा के पास गए और माला वाली घटना सुनाकर बोले– राजन् ! यह सब झुठ है, छल है। नरसी जादू के द्वारा ऐसा करके लोगों को धोखा देता है जिससे कि लोग यह चमत्कार देखकर उसे सच्चा भक्त समझें और उनके अनुयायी हो जाएं। इसलिए राजा साहिब को चाहिए कि ऐसे जादूगर को कड़े से कड़ा दण्ड दें, क्योंकि जादू के द्वारा लोगों को धोखा देकर नरसी भक्ति को लांछित कर रहा है। ईष्र्यालु लोगों का यह विचार था कि केदार राग तो भक्त जी ने गिरवी रख दिया है, इसलिए उस राग में तो वे भजन गा नहीं सकते और जब केदार राग में वे भजन नहीं गाएंगे तो माला भी उनके गले में नहीं पड़ेगी: फलस्वरूप उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी। राजा ने कई लोगों से भक्त नरसी मेहता की महिमा सुनी थी। उस ने विचार किया कि पूरी तरह से सच–झुठ की जांच किए बिना किसी को दोषी ठहराना कदापि उचित नहीं। इस लिए कोई ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे भक्त जी की सच्चाई की परीक्षा हो जाए। यदि वे सच्चे हुए तो इन शिकायत करने वालों का मुंह अपने आप बन्द हो जाएगा और यदि यह माला वाली बात झुठी हुई तो भक्त जी की पोल खुल जाएगी। यह सोचकर राजा ने भक्त नरसी मेहता को दरबार में बुलाया और शिकायत करने वालों की ओर संकेत करते हुए कहा– ये लोग आपकी शिकायत लेकर आए है कि आपकी भक्ति आडम्बर पूर्ण है और आप चमत्कार दिखाकर लोगों को धोखा देते और अपने जाल में फंसाते है। मैंने भी कई लोगों के मुंह से सुना है कि जब आप भगवान के सम्मुख बैठकर भजन गाते है। मैं देखना चाहता हूं कि यह बात कहां तक सच है। इसके लिए मैंने एक उपाय सोचा है। यह कहकर राजा ने निकट रखी एक पुष्पमाला उठाई और उन्हें देते हुए कहा– यह माला लीजिए और राज मन्दिर में चलकर हम सबके सामने भगवान् को पहनाइए। मैं स्वयं मन्दिर का ताला बन्द करके चाबी अपने पास रखूंगा। इस समय अन्धेरा होने वाला है। यदि कल सूर्योदय से पहले यह माला आपके गले में आ जाएगी तो मैं समझूंगा कि आपकी भक्ति सच्ची है और यदि ऐसा न हुआ तो फिर इन सब की शिकायत सच्ची समझकर आपको उचित दण्ड दिया जाएगा। भक्त जी ने माला ले ली और सब लोगों के सम्मुख भगवान् को पहना दी। तत्पश्चात् राजा ने मन्दिर के पट बन्द करके बाहर ताला लगा दिया और सब लोग मन्दिर के सामने बैठ गए। भक्त नरसी जी सोचने लगे– केदार राग तो मैंने गिरवी रखा हुआ है, इसलिए उस राग में तो मैं भजन गा नहीं सकता, क्योंकि ऐसा करना गलत है। फिर क्या किया जाए ? चलो ! जो होगा देखा जाएगा। अधिक से अधिक राजा कारागृह में ही तो डलवा देगा। मुझे तो भगवान् का भजन सुमिरण करना है, घर में क्या और कारागृह में क्या ? भगवान् की जैसी इच्छा होगी वैसा ही होगा, फिर मैं क्यों चिन्ता करू ? यह सोचकर वे स्वरचित भजन गाने लगे। नगर के अनेकों नर नारी राजमन्दिर के प्रांगण में एकत्रा हो गए। भजन कीर्तन का ऐसा समां–बंधा कि किसी को भी समय का पता न लगा यहां तक कि रात समाप्त होने पे आ गई। भगत जी तो निश्चिन्त होकर भजन कीर्तन में संलग्न थे, परन्तु भगवान् को तो अपने भक्त की चिन्ता थी, क्योंकि उनका तो बिरद है कि:– भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र जी महाराज भक्त अजुर्न के प्रति कथन करते है कि जो अनन्य प्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को सच्चाई से, शुद्ध हृदय से तथा निष्कामभाव से स्मरण करते है, उन नित्य निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले भक्तों की सहायता तथा रक्षा करना मैं अपना प्रथम कत्र्तव्य समझता हूँ। इसलिए परमसन्त श्री कबीर साहिब अत्यन्त विश्वासपूर्वक कथन करते है कि:– फ़रमाते है कि मैं किसी बात की चिन्ता क्या करूं, क्योंकि मेरे चिन्ता करने से होता ही क्या है ? होना तो वही कुछ है जो प्रभु की इच्छा है। और जबकि प्रभु को स्वय्र ही मेरी चिन्ता है और वे मेरे हर तरह से रक्षक एवं सहायक है, इसलिए मैं किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करता। भक्त नरसी जी तो निश्चिन्त होकर भजन कीर्तन में मग्न हो गए, उधर भगवान ने क्या किया कि जूनागढ़ पहुंच कर नरसी जी का रूप धारण किया और धरणीधर राय के घर जा पहुंचे और लगे दरवाजा खटखटाने। कुछ देर बाद धरणीधर की नींद टूटी और उन्होंने आवाज़ दी– कौन है ? भगवान् ने उत्तर दिया– मैं नरसिंहराम हुं। आपका ऋण चुकाने आया हूं: द्वार खोलिए। भक्त नरसी जी की आवाज़ पहचान कर धरणीधर राय ने द्वार खोला, भक्त जी के वेष में भगवान् को प्रणाम किया और फिर बोले–भक्त जी ! इस समय रात को आपको कष्ट करने की क्या आवश्यकता थी। रुपए फिर आ जाते। भगवान् ने उत्तर दिया– सो तो ठीक है, परन्तु जब कहीं से रुपए मिल गए तो उन्हें घर पर रखने से भी क्या लाभ ? मैंने यही उचित समझा कि रुपए शीघ्रातिशीध्रआप तक पहुंचा दूं। दूसरे मुझे केदार राग मुक्त कराने की भी शीघ्रता थी, क्योंकि अभी इसी राग में भजन गाना आवश्यक है। यह कहते हुए भक्तरुप भगवान् ने रुपए धरणीधर के हाथ में पकड़ा दिए। धरणीधर जी ने तुरन्त नरसी जी का लिखा प्रतिज्ञा–प्रत्रा निकाला और उसपर भरपाई लिखकर भगवान् के हवाले कर दिया। प्रतिज्ञाप्रत्रा लेकर भगवान् राज–मन्दिर में आए और कागज भक्त जी की झोला में डाल दिया। प्रभु–प्ररणा से उसी समय भक्त जी को चेत हुआ और उनकी दृष्टि उस कागज पर गई। भक्त जी ने कागज उठाया तो यह देखकर अत्यन्त विस्मित हुए कि यह तो उन्हीं का लिखा हुआ प्रतिज्ञापत्रा है जिस के नीचे कुछ और शब्द भी लिखे हुए है। उन्होंने उन शब्दों को मन ही मन पढ़ा। उसमें लिखा था– आज रात्रिा के अन्तिम प्रहर मुझे जगाकर भक्त नरसिंहराम मेहता जी ने मेरे साठ रुपए चुकाता कर दिए। अब वे केदार राग गा सकते है। हस्ताक्षर– धरणीधर राय। भक्त नरसी जी समझ गए कि यह यह सब भगवान् की ही कृपा है। उन्हें रोमांच हो आया और वे प्रेम–विभोर होकर नाचने लगे। यह देखकर विरोधियों ने कहा– देखो ! कैसा ढोंग कर रहा है ? सूर्योदय होने वाला है, अभी सारी पोल खुल जाएगी। किन्तु राजा माण्डलीक भक्त नरसी जी की अवस्था देखकर बहुत प्रभावित हो चुका था। वह जान गया था कि यह ढोंग नहीं, प्रत्युत प्रेम की वह उच्चतम अवस्था है जहां हर किसी की पहुंच नहीं है। उसे चिंता हुई कि सूर्योदय होने वाला है और यदि माला भक्त जी के गले में न पड़ी तो मुझे इन्हें दण्ड देना पड़ेगा। अतएव उसने भक्त जी के कन्धे झिंझोड़ते हुए कहा– भक्त जी ! सूर्योदय होने वाला है, इसलिए सचेत होइए और शर्त पूरी कीजिए। राजा के झिंझोड़ने पर जब भक्त जी को चेत हुआ तो उन्होंने देखा कि पूर्व दिशा में लालिमा छाने लगी है। भक्त जी ने सोचा कि राजा ठीक ही तो कह रहे है। फिर भगवान् ने केदार राग भी छुड़वा दिया है। यह विचार कर उन्होंने केदार राग में भजन गाना आरम्भ किया। भजन समाप्त होने की देर थी कि मन्दिर के पट अपने आप खुल गए और माला नरसी जी के गले में आ गई। यह देखकर निन्दकों के सिर अपने आप लज्जा से नीचे झुक गए। राजा माण्डलीक तो उसी क्षण नरसी जी का शिष्य हो गया: फलस्वरूप भक्त जी की महिमा पहले से भी बढ़ गई। इसी पर सत्पुरुषों के वचन है कि:– सद्गुरु के उपदेशानुसार जिन मनुष्यों के हृदय में परमात्मा की प्रीति उत्पन्न हो गई है, उनके रक्षक एवं सहायक भगवान् स्वयं बन जाते है। जिनको भगवान्का नाम प्यारा है, उनकी निंदा कोई क्या करेगा ? जिनका मन भगवान् की प्रीति में रंग जाता है, निंदक लोग उन्हें बदनाम करने के लिए व्यर्थ ही झख मारते है: वे उनका कुछ बिगाड़ ही नहीं सकते। सत्पुरुष फ़रमाते है कि जो भगवान् के नाम का सुमिरण करते है, भगवान् स्वयं उसकी रक्षा करते है। निंदकों ने जब देखा कि राजा माण्डलिक नरसी जी का शिष्य बन गया है, तो नरसी जी के चरणों में गिर पड़े और अपने अपराध के लिए क्षमा याचना करने लगे। भक्त जी के हृदय में तो किसी के प्रति द्वेष था नहीं, वे तो प्रेम की मूर्ति थे, अतएव उन्होंने उन्हें क्षमा कर दिया। उस दिन से वे सब भी सच्चे भक्त बन गए। दूसरों की उन्नति देखकर ईष्र्या द्वेष की अग्नि में जलना और व्यर्थ ही उनकी निन्दा चुगली करना महान् दोष है। जो मनुष्य इस दोष से बच जाता है, वही परमार्थ में सिद्धि प्राप्त कर सकता है। इस दोष से बच भी वही सकता है, जो हृदय में नम्रता एवं दीनता धारण कर सदा नाम सुमिरण तथा भजन ध्यान में लीन रहता है। जो मान सम्मान का भूखा हो, वह इस दोष से नहीं बच सकता। इसलिए महापुरुषों ने फ़रमाया है कि:– श्री सद्गुरुदेव महाराज जी ने इसीलिए मान बड़ाई तथा ईष्र्या द्वेष त्यागने का हमें उपदेश किया है, क्योंकि इनके रहते हुए जीव भक्तिमार्ग में उन्नति नहीं कर सकता। इसलिए यदि हमें अपना क्ल्याण अभीष्ट है और हम अपना लोक–परलोक संवारना चाहते है तो फिर हमें चाहिए कि श्री सद्गुरुदेव महाराज जी के वचनों को हृदयंगम कर उनपर पूरी तरह आचरण करे। यही हमारे लिए कल्याणकारी मार्ग है और इसी में ही हमारी जीवात्मा का कल्याण है।

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Saturday, March 10

राधे सदा मुझ पर रहमत की नजर रखना



राधेssराधेssराधेss राधे राधे राधे
राधे सदा मुझ पर रहमत की नजर रखना..
मै दास तुम्हारा हु , इतनी तो खबर रखना..

नजर रखना..नजर रखना..
मुझ पर नजर रखना..नजर रखना ..राधे सदा मुझ पर रहमत की नजर रखना..


1.यहाँ कोई नही अपना, एक तेरा सहारा है..
मैंने देख लिया सब को..अब तुझ को पुकारा है ..
कही डूब न जाऊ मै..मेरा हाथ पकड़ रखना..राधे सदा मुझ पर रहमत की नजर रखना..
2.कब तक ठुकरओगी,कब  तक न बुलाओगी,
दोगी न हमें दर्शन, कब तक तडपाओगी,
दीदार करू तेरा जीवन का यही सपना..राधे सदा मुझ पर रहमत की नजर रखना..
राधे सदा मुझ पर रहमत की नजर रखना..

मै दास तुम्हारा हु , इतनी तो खबर रखना..
तेरे चरनन की रज पाऊ..किशोरी तेरे चरनन की रज पाऊ..
बैठी रहू कुंजन के कोने..श्यामराधिका गाऊ..किशोरी तेरे चरनन की रज पाऊ..
तेरे चरनन की रज पाऊ..किशोरी तेरे चरनन की रज पाऊ
ब्रज की रानी राधिका अष्ट सखिन के झुण्ड ।
डगर बुहारत सांवरो..जय-जय राधा कुंड ।।

तेरे चरनन की रज पाऊ..किशोरी तेरे चरनन की रज पाऊ
भक्तो ने तुमको देख लिया..संतो ने तुमको देखलिया ।
राधे कभी तो मै भी कहू..मैंने भी तुमको देखलिया ।।
तेरे चरनन की रज पाऊ..किशोरी तेरे चरनन की रज पाऊ


राधेssराधेssराधेss राधे राधे राधे
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Saturday, March 3

होरी में मत मारे दृगन की चोट रसिया



बिहारी बिहारिणी की रे मोपे यह छवि बरनी न जाये 
रंग महल में होली खेलें, अंग अंग रंग छु छाए 
तन मन मिले जुले मृदु रस में, आनंद उर न समाये 
श्री हरिदास ललित छवि निरखें, सेवत नव नव भाये






श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है।
सिंगार बसंती है …हो सिंगार बसंती है।
मोर मुकुट की लटक बसंती, चन्द्र कला की चटक बसंती,
मुख मुरली की मटक बंसती, सिर पे पेंच श्रवण कुंडल छबि लाल बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥१॥
माथे चन्दन लग्यो बसंती, कटि पीतांबर कस्यो बसंती,
मेरे मन मोहन बस्यो बसंती, गुंजा माल गले सोहे फूलन हार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत..॥२॥
कनक कडुला हस्त बसंती, चले चाल अलमस्त बसंती,
पहर रहे सब वस्त्र बसंती, रुनक झुनक पग नूपुर की झनकार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥३॥
संग ग्वालन को टोल बसंती, बजे चंग ढफ ढोल बसंती,
बोल रहे है बोल बसंती, सब सखियन में राधे की सरकार बसंती है ।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत…॥४॥
परम प्रेम परसाद बसंती, लगे चसीलो स्वाद बसंती,
ह्वे रही सब मरजाद बसंती, घासीराम नाम की झलमल झार बसंती है।
श्यामा श्याम सलोनी सूरत..॥५॥

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Friday, March 2

राधे, हे प्रियतमे, प्राण-प्रतिमे, हे मेरी जीवन मूल


 
 
 
राधे, हे प्रियतमे, प्राण-प्रतिमे, हे मेरी जीवन मूल !
पलभर भी न कभी रह सकता, प्रिये मधुर ! मैं तुमको भूल॥
श्वास-श्वासमें तेरी स्मृतिका नित्य पवित्र स्रोत बहता।
रोम-रोम अति पुलकित तेरा आलिङङ्गन करता रहता॥

 
mohan natvar pyaro
 
नेत्र देखते तुझे नित्य ही, सुनते शद मधुर यह कान।
नासा अङङ्ग-सुगन्ध सूँघती, रसना अधर-सुधा-रस-पान॥
अङङ्ग-‌अङङ्ग शुचि पाते नित ही तेरा प्यारा अङङ्ग-स्पर्श।
नित्य नवीन प्रेम-रस बढ़ता, नित्य नवीन हृदयमें हर्ष॥
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